Adrashya Humsafar - 1 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 1

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अदृश्य हमसफ़र - 1

अदृश्य हमसफ़र

भाग 1

ममता कुर्सी पर टेक लगाए ब्याह की गहमा गहमी मे खोई हुई थी। सब इधर उधर भाग रहे थे तैयारियों में जुटे हुए।

लगभग 5 साल बाद मायके आना हुआ था उसका वह भी भतीजी की शादी के बहाने से। भाई ने सीधा कह दिया था उसे-"देख ममता, कितने साल हो गए हम भाई बहनों को साथ बैठकर चाय पर गप्पें हाँके हुए। मुम्बई न हुई सात समंदर पार से भी दूर हो गई तुम। देखो, तुम नही आई तो ब्याह की तारीख आगे बढ़ा दूँगा। "

उसे घुटने टिकाने पड़े थे भाई की ज़िद के सामने और वह खुद भी तो भतीजी के ब्याह का हिस्सा बनने को लालायित थी। फर्क था तो सिर्फ इतना कि भाई ने उसके ठहरने की अवधि को 4 दिन से 10 दिन करा दिया था।

सभी को दौड़ते भागते देख रही थी और मुस्कुराती जा रही थी। उसे पंडाल के बीचोंबीच एक सोफा कुर्सी पर बैठा कर सब आते जाते तैयारियों से सम्बंधित सलाह लेते जा रहे थे। आते जाते सलाह के साथ सभी का ममता संग मुस्कुराहटों का आदान प्रदान भी जारी था। ममता तो उनके लिए महारानी विक्टोरिया के जैसे थी।

छोटा भाई सूरज, बस एक बात ज़बान पर कि-" बस जिज्जी, तुम बस बताती जाओ कैसे क्या करना है। हम सब हैं न करने वाले। "

जब भी ममता उठकर कोई काम हाथ में लेती तो जिसकी भी नजर पड़ती वही ममता को पकड़कर फिर से बैठा देता और हाथ मे पकड़ा काम खुद ले लेता। सभी के प्राण जैसे ममता में बसते थे।

सभी की लाडली थी ममता। आज उसका अनुभव सभी तैयारियों पर हावी था, आखिर दो बच्चों को ब्याह चुकी थी। मायके में भाई के घर पहली शादी थी। कितना घबराया हुआ था जब ममता को अनु के रिश्ता पक्का होने की खबर सुनाई थी।

"जिज्जी कैसे होगा सब?"

उसकी घबराहट पर ममता की हंसी छूट गयी थी। एकदम से कह उठी-"तू क्यों घबराता है पगले। अनु मेरी भी बच्ची है। मैं सब सम्भाल लूँगी। भाभी को भी कह दे, चिंता न करे रत्ती भर भी। "
तब जाकर सूरज की घबराहट थोड़ी कम हुई।

बारात की आगवानी की सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी। ममता वर्तमान में लौटी जब भतीजा मनु दौड़ता हुआ आया-" भूजी, भूजी बारात चौपाल से निकल चुकी है। सब जयमाला की तैयारी शुरू कर दो। "

ममता उठी और मनु को गले से लगा लिया-" मनु, ऐसे न हांफ पुत्तर। सब तैयारी पूरी हैं। चल अब खुद जाकर तैयार हो जा। दुल्हन के इकलौते भाई हो तुम। "

"जी भूजी" कहते ही मनु घर के अंदर की और दौड़ गया।

ममता उसे प्यार से तब तक निहारती रही जब तक कि मनु घर के अंदर नही चला गया।

वह फिर से सोफे पर टेक लगाकर बैठ गयी और सभी को एक एक करके निहारने लगी। खुद को बेहद गर्विता महसूस कर रही थी लाजमी भी है जिस तरह से उसे मायके का हर शख्स हर पल उसे पलकों पर बिठा रहा था।

क्रमशः

***